रंगवा जाति का संक्षिप्त इतिहास

रंगवा जाति का संक्षिप्त परिचय-

     रंगवा एक जाति है जिसका मूल पेशा कपड़ा बुनना और रंगना है।

     निम्नलिखित सेंसस ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट में भी इसका उल्लेख है।

  1. Report on The Census of British India taken on the 17 February 1881″, Vol-I
    पृष्ठ संख्या 300 पर Para 640 के कालम (C) मे हिन्दू जातियों की सूची दिया गया है और पृष्ठ संख्या 301 पर Para 640 के कालम (C) के ही क्रम संख्या “9” मे “Rangwa (रंगवा)” जाति को “Weaver caste (बुनकर जाति)” की श्रेणी मे रखा गया है तथा रंगवा जाति की जनसंख्या 10265 अंकित है।
  2.  Cencus of India- 1901, Vol-I (Ethnographical Appendices) मानव जाती परिशिष्ट,लेखक- एच.एच.रिस्ले, पृष्ठ- 167, 5 आफ आर्य द्राविडियन ट्रैक्ट, चमार, डब्ल्यू. क्रुके, आई.सी.एस. पृष्ठ- 168 In Benaras the Rangua (rang, “colour”) who are dyers; “बनारस मे रंगवा (रंग, “कलर”) रंगाई का काम करते हैं।”
  3. Cencus of India- 1911, Vol-V,
    बंगाल, बिहार, उड़ीसा और सिक्किम, पार्ट-I, रिपोर्ट L.S.S. ‘O’ Malley, I.C.S. पृष्ठ 507,
    Rangwas are another sub caste in Saran who keep to the traditional occupation of weaving. “रंगवा सारण में एक उप-जाति हैं, जिसका परम्परागत पेशा बुनाई हैं।”

       हाथ से कपड़ा बुनने और रंगने का पेशा रंगवा जाति वर्षों से करती आ रही है, परंतु वैज्ञानिक युग में लाभकारी न होने के कारण यह पेशा अब लगभग लुप्त हो गया है। अभी भी कुछ लोग कपड़ा बुनने का काम करते हैं ।अधिकांश लोग भिन्न- भिन्न काम में लग गये हैं।

         ब्रिटिश साम्राज्य मे यहाँ की कारीगरी, शिल्प, वाणिज्य आदि पर विशेष कर लगा दिया गया। यूरोप मे औद्योगिक क्रांति के कारण इन सभी को विशेष धक्का लगा। रंगवा जाति का हाथ से कपड़ा बुनने का शिल्प जो उस समय उत्कर्ष पर था, उस पर भी धक्का लगा और वह कारोबार विनिष्ट हो गया। रंगवा (बुनकर जाति) अंग्रेजो के अत्याचार से इतनी त्रस्त हो गयी कि उसका व्यवसाय ही विनिष्ट हो गया। उसने अपनी सुरक्षा के लिए अपना पारम्परिक व्यवसाय छोड़ दिया और रोजी रोटी की चिंता मे इधर उधर भटकने लगे। इसलिए उसे जो अन्य कार्य मिला उसे ही जीविकोपार्जन का साधन बनाया। यही कारण है कि, इस समय इस जाति का अपना कोई कथित व्यवसाय नही है। वर्तमान में रंगवा जाति के सदस्यों के काम करने की औसत ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरो मे अधिक है। शहरों मे ज्यादातर रंगवा जाति के सदस्य जूट मिल या सूत मिल मे कार्यरत थे। संभवतः इसलिए कि इनका इन मिलों मे इनके परम्परागत पेशा से मिलता जुलता कार्य होता था। अब जुट मिलें भी प्रायः बंदी के कगार पर है और रंगवा विरादरी के सदस्य अन्य क्षेत्रों, जहां भी काम मिला कर रहे हैं।

       अंग्रेजो के आतंक से अधिकांश लोग अपना उपनाम भी बदल दिए। आज भी ऐसे रंगवा पाए जाते है जो रंगवा होकर भी अपने को रंगवा नहीं कहते हैं। यही कारण है कि रंगवा जाति का नाम अधिकांश अन्य जातियां नही जानती है।

धर्म-

रंगवा जाति हिन्दू धर्मावलम्बी है। अतः सभी हिन्दू देवी देवताओं की पूजा करते हैं एंव हिन्दूओं के सभी पर्वो, त्योहारों को मनाते हैं।

निवास स्थान-

रंगवा जाति के सदस्य प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, झारखंड, पश्चिम बंगाल मे निवास करते हैं। भारत के अन्य सभी राज्यों में भी छिट-फुट रूप से रहते हैं। नेपाल मे भी रंगवा जाति के सदस्य निवास करते है।

श्रेणी-

उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड मे रंगवा जाति पिछड़ा वर्ग के राज्य सूची मे सम्मिलित है जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तराखण्ड और पश्चिम बंगाल के पिछड़ा वर्ग के केन्द्रीय सूची में सम्मिलित है ।