जब 2016 में “अखिल भारतीय रंगवा सुधार समिति” के संस्थापकों एवं पदाधिकारियों ने साल में एक दिन रंगवा दिवस की परिकल्पना की थी, उस समय रंगवा दिवस कब मनाया जाय, कैसे मनाया जाय, इस विषय पर सभी स्वजातीय सदस्यों से राय माँगी गई थी। समाज के संकीर्ण विचारधारा के कुछ सदस्य उस समय रंगवा दिवस मनाने का घोर विरोध किए थे और कहे थे कि-
1- किसी जाति के नाम पर दिवस नही होता है, और भी बहुत सारी नकारात्मक कुतर्क दिए थे।
2- एक सदस्य ने तो रंगवा दिवस के असफल करने के लिए लम्बी चौड़ी कविता तक लिख कर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया था। वह कविता और समिति द्वारा उसका जवाब निम्नलिखित है-
उस परिस्थिति मे भी समाज के चिंतकों की लम्बी चर्चा एवं विचार विमर्श के बाद दिए गए सुझावों पर अमल करते हुए समिति द्वारा रंगवा दिवस प्रत्येक वर्ष 06 सितंबर को मनाने का निर्णय लिया गया। उन सदस्यों के विरोध के बावजूद, सम्पूर्ण रंगवा जाति ने इस निर्णय का स्वागत किया और सहर्ष खुले दिल से, पूर्ण जोशोखरोश एवं बड़े ही उत्साह के साथ रंगवा दिवस मनाने की परम्परा शुरू किया।
स्वजातीय भाईयों द्वारा रंगवा दिवस की अपार सफलता एवं इसे सहर्ष स्वीकारने तथा अन्य जातियों जैसे – चौरसिया और गुर्जर प्रतिहार द्वारा अपने जाति के नाम पर दिवस मनाने की जानकारी जब इन सदस्यों को हुआ तो, ये सदस्य अपने आप को अपमानित महसूस करने लगे और रंगवा दिवस की महत्ता को धूमिल करने लिए, “लजाईल बिलारी खम्भा नोचे” की कहावत को चरितार्थ करते हुए समाज को भ्रमित करने का प्रयास करने लगे एवं यह प्रचारित करने लगे कि रंगवा जाति का नाम बिहार में पिछड़े वर्ग की सूची में प्रथम बार 04 अप्रैल 1975 को दर्ज हुआ था, तो रंगवा दिवस उस दिन क्यों नहीं मनाया जा रहा है ?
पहले ये सदस्य रंगवा दिवस मनाने के विरोध मे थे। जब स्वजातीय सदस्यों द्वारा रंगवा दिवस मनाया जाने लगा तो, अब कहते हैं कि, तारीख गलत है। उनका मकसद आसानी से समझा जा सकता है। वे सदस्य आजतक “अखिल भारतीय रंगवा सुधार समिति” के प्रत्येक काम मे अड़गां लगाने का ही प्रयास किए है ये बात अलग है कि, इसमे वो हमेशा असफल रहे है।
समिति का मकसद था साल मे किसी भी एक दिन रंगवा दिवस मनाया जाना चाहिए। वह चाहे 06 सितंबर हो या कोई अन्य दिन।
ये सदस्य रंगवा दिवस को असफल करने के लिए जिस 04 अप्रैल 1975 का उल्लेख करते हैं। ज्ञात हो कि अभी तक ये सदस्य ऐसा कोई प्रमाण प्रस्तुत नही कर पाए है जिससे प्रमाणित हो कि, बिहार मे रंगवा जाति को पहली बार 04 अप्रैल 1975 को पिछड़ा वर्ग मे शामिल किया गया था। यदि एक क्षण के लिए इसे सही मान भी लिया जाए तो, इन सदस्यों द्वारा रंगवा दिवस 1975 से 2017 तक क्यों नही मनाया गया ? जब समिति रंगवा दिवस मनाने लगी तब उनको रंगवा दिवस 04 अप्रैल क्यों याद आया ? कारण स्पष्ट है कि उन सदस्यों के पास इस तरह की कभी सोच ही नही था।
अब तक के उपलब्ध अभिलेखों एवं दस्तावेजों से स्पष्ट होता है कि बिहार में पिछड़ा वर्ग की पहली सूची 1951 मे प्रकाशित हुई थी जिसमे रंगवा सहित 109 जातियां थी। इस सम्बंध मे मण्डल कमीशन की रिपोर्ट क अंश भी प्रमाण स्वरूप प्रस्तुत है:
जून 1971 में श्री मुंगेरी लाल की अध्यक्षता में आयोग का गठन हुआ जिन्होंने फरवरी 1976 में बिहार सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमे 128 जातियां पिछड़े वर्ग में एवं 94 जातियां अत्यंत पिछड़े वर्ग से शामिल की गई जिसे बिहार सरकार ने अक्टूबर 1978 मे उल्लेखित सिफारिशो को स्वीकार किया और 10 नवम्बर 1978 को प्रकाशित किया, जो बिहार सरकार द्वारा पिछड़े वर्ग की दूसरी सूची थी। इसी सूची मे रंगवा जाति को अत्यंत पिछड़ा वर्ग मे शामिल किया गया था । यह सूची समिति द्वारा प्रकाशित पत्रिका “परिचयांक और विजयांक” के पृष्ठ संख्या 28 पर अंकित है।
एक स्पस्टीकरण यहां देना आवश्यक है। एक संगठन, अखिल भारतीय रंगवा समाज, के पदाधिकारी कहा करते थे कि, उसी संगठन और स्वर्गीय प्रभुनाथ जी के प्रयास से रंगवा जाति को बिहार के अत्यंत पिछड़ा वर्ग की सूची मे स्थान मिला है, जिसे इस समिति द्वारा प्रकाशित पत्रिका परिचयांक और विजयांक के पृष्ठ संख्या 13 मे उल्लेख किया गया है। अब उस संगठन के नाम पर राजनीति करने वाले सदस्य इसको नही मानते है। इसका प्रमाण उस संगठन द्वारा प्रकाशित पत्रिका, युगांत के पृष्ठ संख्या 09 मे अक्टूबर 1978 के शासनादेश का जिक्र न होना है।
यहां निम्नलिखित तथ्य स्वतः प्रमाणित हो जाता है कि-
1- बिहार मे रंगवा जाति को पिछड़ा वर्ग या अत्यंत पिछड़ा वर्ग मे शामिल कराने मे अखिल भारतीय रंगवा समाज नामक संगठन का कोई योगदान नही था। क्योंकि पिछड़ा वर्ग की पहली सूची 1951 मे प्रकाशित हुआ था उस समय उस संगठन की स्थापना भी नही हुआ था।
2- अत्यंत पिछड़ा वर्ग की सूची 1978 मे प्रकाशित हुआ था जिसमे किसी भी तरह के उस संगठन का योगदान नही था। ( कारण ऊपर अंकित है।)
3- बिहार निवासित समाज के एक सम्मानित सदस्य श्री शिव नाथ जी ने अपना पिछड़ा वर्ग का जाति प्रमाणपत्र सन 1970 में बनवाया था एवं राज्य सरकार के एक सम्मानित पद का निर्वहन कर ससम्मान सेवा निवृत्त हुए हैं।
4- उस संगठन द्वारा समाज को अब तक सही जानकारी नही दिया गया है और समाज को भ्रमित किया गया है।
5- तथाकथित संगठन के उक्त सदस्य आधारहीन अफवाहें फैलाते रहते हैं एंव स्वजातीय समाज को भ्रमित करने का प्रयास करते रहते हैं। इनका उद्देश्य महज़ अपने आप को चर्चा मे बनाए रखना एवं रंगवा दिवस को असफल करना और अखिल भारतीय रंगवा सुधार समिति के पदाधिकारियों/सदस्यों को हतोत्साहित करना है। ये सदस्य महज एक संगठन के हितैषी है। रंगवा जाति के हित से इनका कोई मतलब नही है।
अतः सभी स्वजातीय सदस्यों से अनुरोध है कि, संकीर्ण मानसिकता वाले उन सदस्यों के झांसे मे न आएं और प्रत्येक वर्ष रंगवा दिवस बड़े धूमधाम से मनाएं।
धन्यवाद!
निर्मल कुमार रंगवा,
महामंत्री,
अखिल भारतीय रंगवा सुधार समिति