रंगवा दिवस

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रंगवा दिवस

रंगवा दिवस क्यों मनाया जाता है?

       अखिल भारतीय रंगवा सुधार समिति के संस्थापकों एवं चिंतकों का सपना था कि, साल मे कम से कम एक दिन ऐसा होना चाहिए, जिस दिन सम्पूर्ण रंगवा जाति के सदस्य अपने जाति के उत्थान के बारे मे सोचे और उस दिन सम्पूर्ण रंगवा जाति के सदस्य उत्सव के रूप मे मनाए। सम्पूर्ण रंगवा जाति के सदस्य आपस मे गिले शिकवे को भुलाकर एक-दूसरे से मिले जिससे आपस में एकता बने और जाति हित में कुछ काम होगा।

       बहुत सोचने विचारने और मंथन करने के बाद यह दिन 6 सितंबर को चुना गया।  इसका कारण है कि इसी दिन एक लंबे संघर्ष के बाद अखिल भारतीय रंगवा सुधार समिति के प्रयासों से उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 1995 में रंगवा जाति को उत्तर प्रदेश के अन्य पिछड़ा वर्ग के राज्य सूची में शामिल किया गया, जिसके आधार पर ही भारत सरकार द्वारा रंगवा जाति के उत्तर प्रदेश के केंद्रीय सूची में सम्मिलित किया गया। यह दिन वास्तव में रंगवा जाति के लिए बहुत ही खुशी का दिन था। क्योंकि इसके लिए 1953 से, जब प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग, काका कालेलकर आयोग बना था, तब से रंगवा जाति के सदस्यों द्वारा रंगवा जाति को पिछड़ा वर्ग की सूची में सम्मिलित कराने का प्रयास किया जा रहा था। लगातार असफलता के बाद अंततः अखिल भारतीय रंगवा सुधार समिति के प्रयास से 6 सितंबर 1995 को सफलता मिला। इस दिन से जाति में एक नई उत्तेजना और चेतना पैदा हुआ और लोगों को लगा कि रंगवा जाति का नाम भी सरकार की किसी सूची में दर्ज हो गया है। अब रंगवा जाति भी पहचान के मोहताज नहीं रहेगी। इसीलिए रंगवा दिवस के लिए यह पावन दिन चुना गया है। सन् 2017 से प्रत्येक वर्ष रंगवा दिवस बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

रंगवा दिवस मनाने का औचित्य क्या है?

     जैसा की आप लोगों को पता ही है आजादी के सात दशक बाद भी रंगवा जाति अपनी पहचान के लिए तरस रही है। हम जिस गांव में रहते हैं, उस गांव के बगल के लोग नहीं जानते हैं कि, रंगवा कोई जाति है। जिस जिले में रहते हैं, उसके पड़ोसी जिले के लोग नहीं जानते हैं कि, रंगवा कोई जाति है। शहरों में जिस मोहल्ले में रहते हैं, जिस कार्यालय, जिस फैक्ट्री में काम करते हैं उस मुहल्ले के लोग, उस कार्यालय, उस फैक्ट्री के लोग भी नहीं जानते हैं कि रंगवा कोई जाति है ? इसका कारण शायद हम खुद ही है हम अपने को रंगवा कहते ही नहीं तो कोई कैसे जानेगा कि रंगवा कोई जाति है। रंगवा जाति के लोग भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न भिन्न टाईटल लिखते है, जैसे प्रसाद, गुप्ता, अग्रवाल, केसरवानी, खन्ना, सिन्हा आदि। तो कोई रंगवा जाति कैसे जानेगा ? इस समिति के प्रयासो से अब रंगवा जाति के बहुत सारे सदस्य अपने को रंगवा कहने और बोलने लगे हैं जिससे धीरे-धीरे रंगवा जाति का भी पहचान होने लगा है।

       इससे सम्पूर्ण रंगवा जाति के सदस्य एक सूत्र में बंधेगे । रंगवा जाति के विकास की चर्चा और उसे कार्य रूप में परिणीत कैसे किया जाय इस पर बातें होगी। रंगवा दिवस मनाने की सूचना लोकल समाचार पत्रों और टीवी के लोकल चैनल पर अखिल भारतीय रंगवा सुधार समिति के सभी शाखाएं अपने-अपने स्तर से देगी। इससे रंगवा जाति के नाम का प्रचार प्रसार होगा और कुछ दिनों में रंगवा जाति का राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक पहचान होगा। तब शायद ही कोई भी रंगवा जाति के सदस्य अपने को रंगवा कहने मे संकोच या शर्म महसूस नहीं करेगा।